Friday, August 30, 2013

“” विचार कभी नहीं मरते !””




एक श्रद्दांजलि श्री नरेन्द्र दाभोलकर जी को !!

दोस्तों , बहुत कम ऐसा होता है कि समाज में किसी एक मोहिम के लिए ,कोई एक व्यक्ति अपने जीवनकाल में एक उदाहरण बन जाता है , मैं ऐसे ही एक व्यक्ति श्री नरेन्द्र दाभोलकर जी के बारे में अपनी बात रखना चाहता हूँ. 

दोस्तों , डॉ. नरेन्द्र दाभोलकर का जन्म 1.11.1945 में महाराष्ट्र के सातारा ज़िले में हुआ था . एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने सामाजिक कार्यों में ख़ुद को झोंक दिया. सन् 1982 से वे अंधविश्वास निर्मूलन आंदोलन के पूर्णकालीन कार्यकर्ता थे. सन् 1989 में उन्होंने महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिती की स्थापना की. तब से वे समिति के कार्याध्यक्ष थे. इस संगठन की महाराष्ट्र में लगभग 200 शाखाएं हैं.

उन्होंने एक विचार का आह्वान किया , वो विचार था : अंधश्रद्धा का निर्मूलन. इन्होने तथा इनके संगठन ने धर्म के नाम पर होने वाले कई अंधश्रद्धाओ का भांडा फोड़ा . मुझे अच्छी तरह से याद है कि नागपुर में उन दिनों कई बार मैंने इस संगठनो के द्वारा आयोजित सभाओं में भाग लिया था और उन दिनों ये जादूगरों की मदद से अंधश्रद्दा का निर्मूलन करते थे. 

हमारे देश में आज भी कई जगह ख़ास करके गाँवों में अंधश्रद्धा छाई हुई है . गाँवों में आज भी जादू टोना ,टोटका इत्यादि के नाम पर हत्याए होती है . गड़े हुए धन की प्राप्ति के नाम पर हत्याए होती है . डायन होने के शक में लोग आज भी औरतो को बेइज्जत करते है . जहाँ देश एक ओर प्रगति के पथ पर है वही दूसरी ओर आज भी इन्ही सब बातो के कारण हम आज भी पिछड़े हुए है .
अपने जीवनकाल में डॉ. दाभोलकर ने कई पुस्तकों लिखी , मुख्यतः ऐसे कैसे झाले भोंदू (ऐसे कैसे बने पोंगा पंडित), अंधश्रद्धा विनाशाय, अंधश्रद्धा: प्रश्नचिन्ह आणि पूर्णविराम(अंधविश्वास: प्रश्नचिन्ह और पूर्णविराम), भ्रम आणि निरास, प्रश्न मनाचे (सवाल मन के) इत्यादि पुस्तके उनमें सम्मिलित है. इन किताबो में उन्होंने ऐसी कई बातो का उल्लेख किया है , जिनकी वजह से अंधश्रद्धा छाई हुई है . और उन अन्धश्रद्दा का कैसे निर्मूलन करे इस बारे में भी बताया है .

डॉ. दाभोलकर का कहना था , "मुझे मजबूरीवश आस्था रखनेवालों से कोई आपत्ति नहीं है. मेरी आपत्ति है दूसरों की मजबुरियों का ग़लत फ़ायदा उठानेवालों से."

डॉ. दाभोलकर ने  कई तरह से अलग अलग उदाहरण देकर लोगो में छाया हुआ अंधविश्वास को दूर करने की एक कामयाब कोशिश की है . उन्होंने संतो का उदाहरण दिया , जादूगरों का उल्लेख किया तथा ऐसे कई तरह से लोगो में खासकर के ग्रामीण लोगो में छाये हुए अंधविश्वास को दूर किया. 

उन्होंने जो विचार इस समाज को दिया है , वो कभी भी नहीं ख़त्म होने वाला है . आईये , हम एक छोटा सा प्रण करे कि अपने अपने दायित्व में अपने आसपास की दुनिया में छाये हुए इस अंधविश्वास  की दुनिया को ख़त्म करने में अपना सहयोग देंगे . हमारा यही सहयोग डॉ. नरेन्द्र दाभोलकर के विचार को हमेशा जीवित रखेंगा . 

दिवगंत आत्मा को प्रणाम !

विजय कुमार सप्पत्ति


Tuesday, August 20, 2013

प्रेम की राह

कभी कभी जीतना ज्यादा जरुरी नही होता है ...
जीना भी आना चाहिए ;
और अक्सर प्रेम की राह पर जीते हुए हारा जाता है .
हां ! सच्ची ! तुम्हारी कसम !!!

Monday, August 5, 2013

फासला

कभी कभी बीच का फासला एक जमीन से एक आसमान की दूरी पर हो जाता है  / बन जाता है . और कई जन्म इस फासले को तय करने में कम पड़ते है . कभी हम जमीन पर खड़े नज़र आते है और कभी वो आसमान /फलक पर सितारे बन उड़ते है ......और ये बेमज़ा ज़िन्दगी यूँ ही बस कट जाती है ......

Friday, August 2, 2013

प्रेम

प्रेम हमेशा ही अधुरा होता है . जिसे हम पूर्णता समझते है  , वो कभी भी प्रेम नहीं हो सकता . प्रेम का कैनवास इतना बड़ा होता है कि एक ज़िन्दगी भी उसमे समा नहीं जा सकती है . इसी ज़िन्दगी और प्रेम के युद्ध में अक्सर ही ज़िन्दगी की जीत [ ? ] होती है .   और प्रेम की हार [ ? ] - प्रश्न चिन्ह इसलिए है कि , हार -जीत की परिभाषा हम सब के लिए इस विषय में अलग अलग होती है . 

प्रेम -एक जीवन में जिया गया सबसे खूबसूरत अनुभव होता है .